श्री शिव आरती
जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय…
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय…
दो भुज चार चतुर्भुज द... Readmore
श्री शिव आरती
जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय…
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय…
दो भुज चार चतुर्भुज द... Readmore
श्री शिव आरती
जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय…
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय…
दो भुज चार चतुर्भुज द... Readmore
Shri Shiv Chalisa : Text in English
Jai Ganesh Girija Suvan
Mangal Mul Sujan
Kahat Ayodhya Das
Tum Dey Abhaya Varadan
Jai Girija Pati Dinadayala
Sada Karat Santan Pratipala
Bhala Chan... Readmore
श्री शिव चालीसा
दोहा
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला । सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके । कानन कुण्डल ... Readmore
Origin of Maha Mrityunjaya Mantra
You can found this Mantra in Mandala 7 of Hymn 59 present in Rigveda. Usually, Maharshi Vashishta is attributed with this mantra because he was the... Readmore
Gayatri Mantra is a highly revered mantra from the Rig Veda (Mandala 3.62.10), dedicated to Savitr, the sun deity. Gayatri Mantra is the solution of every problem. There is nothing better t... Readmore
Gayatri Mantra is a highly revered mantra from the Rig Veda (Mandala 3.62.10), dedicated to Savitr, the sun deity. Gayatri Mantra is the solution of every problem. There is nothing better t... Readmore
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श्री रामचरित मानस के रचयित गोस्वामी तुलसीदास का परिचय
पूरा नाम – गोस्वामी तुलसीदास
जन्म – सवंत 1589
पिता – आत्माराम
माता – हुलसी
शिक्षा – वेद, पुराण एवं उपनिषदों
पत्नीा रत्नावली ।
भाषा तथा प्रमुख ग्रन्थ: ब्रज तथा अवधी (रामचरितमानस)
मृत्यु: संवत 1680 (असीघाट)
महान कवि तुलसीदास की प्रतिभा-किरणों से न केवल हिन्दू समाज और भारत, बल्कि समस्त संसार आलोकित हो रहा है । वे एक हिन्दू कवी-संत, संशोधक और जगद्गुरु रामानंदाचार्य के कुल के रामानंदी सम्प्रदाय के दर्शनशास्त्री और भगवान श्री राम के भक्त थे। तुलसीदास भक्ति भक्ति काल के रामभक्ति शाखा के महान कवि हैं । संत तुलसी विद्वान व घर्म के मर्मज्ञ थे। ‘रामचरितमानस’ हिंदू धर्म की रचना है और उसे घर – घर में आदर प्राप्त हुआ है। श्री रामचरितमानस के रचयिता जो अब तक के लिखे गए सबसे महान महाकाव्यों में से एक है गोस्वामी तुलसीदास का जन्म सन् १५६८ में राजापुर में श्रावण शुक्ल ७ को मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में हुआ था। बचपन में इनको तुलसीराम के नाम से जाना जाता था। तुलसीदास की जन्मभूमि होने का गौरव पाने के लिए अब तक राजापुर (बांदा), सोरों (एटा), हाजीपुर (चित्रकूट के निकट), तथा तारी की ओर से प्रयास किए गए हैं। तुलसीदास के माता पिता के संबंध में कोई ठोस जानकारी नहीं है। मान्यता के आधार पर पिता का नाम आत्माराम और माता का नाम हुलसी देवी था। भविष्यपुराण में उनके पिता का नाम श्रीधर बताया गया है। रहीम के दोहे के आधार पर माता का नाम हुलसी बताया जाता है।
सुरतिय नरतिय नागतिय, सब चाहत अस होय ।
गोद लिए हुलसी फिरैं, तुलसी सों सुत होय ।।
जाति और वंश के सम्बन्ध में तुलसीदास ने कुछ स्पष्ट नहीं लिखा है। कवितावली एवं विनयपत्रिका में कुछ पंक्तियां मिलती हैं, जिनसे प्रतीत होता है कि वे ब्राह्मण कुलोत्पन्न थे-
दियो सुकुल जनम सरीर सुदर हेतु जो फल चारि को
जो पाइ पंडित परम पद पावत पुरारि मुरारि को ।
(विनयपत्रिका) तुलसी की पूजा के फलस्वरुप उत्पन्न पुत्र का नाम तुलसीदास रखा गया। गोस्वामी तुलसीदास जी को महर्षि वाल्मीकि का अवतार भी माना जाता है। मौजूद स्रोतों के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि वाल्मिकी जी के मुख से रामायण को सुनने के लिये हनुमान जी खुद जाया करते थे।भविष्यपुराण के अनुसार राघवानंद, विलसन के अनुसार जगन्नाथ दास, सोरों से प्राप्त तथ्यों के अनुसार नरसिंह चौधरी तथा ग्रियर्सन एवं अंतर्साक्ष्य के अनुसार नरहरि तुलसीदास के गुरु थे। तुलसीदास का विवाह रत्नावली (दिनबंधु पाठक की पुत्री) से वर्ष 1583 में ज्येष्ठ महीने (मई या जून का महीना) के 13वें दिन हुआ था।ऐसी मान्यता है की वे अपनी पत्नी के प्रति पूर्ण रुप से आसक्त थे। पत्नी रत्नावली के प्रति अति अनुराग की परिणति वैराग्य में हुई।
एक कहानी प्रचलित हैं, वह अपनी पत्नी से इतना प्रेम करते थे कि अपनी ससुराल (पत्नी के मायके) में बगल का घर लेकर रहने लगे थे, हालांकि जब यह बात उनकी पत्नी को मालूम हुई, तो रत्नावली ने उनके प्रेम का तिरस्कार करते हुए कहा कि जितना प्रेम मुझसे करते हो, उतना प्रेम भगवान राम से करना चाहिए, यह सब सुनकर तुरंत ही तुलसीदास ने मोह-माया छोड़कर एक तपस्वी का जीवन व्यतीत करने लगे। तुलसीदास की पत्नी ने संकोच के साथ कहा था -
हाड़ माँस को देह मम, तापर जितनी प्रीति।
तिसु आधो जो राम प्रति, अवसि मिटिहि भवभीति।।
‘लाज न आयी आपको, दौरे आयो साथ’
“ अस्थि चर्ममय देह ऐसी प्रीति ।
नेकु जो होती राम से, तो काहे भवभीत ।।”
ऐसा कहा जाता है की इसी से प्रेरित होकर तुलसीदास ने वैराग्य लिया था। इसके बाद काशी के विद्वान शेषसनातन से तुलसीदास ने वेद-वेदांग का ज्ञान प्राप्त किया।
तुलसीदास जी ने 1574 से अपना लेखन कार्य आरम्भ किया, और कई साहित्यिक कृतियाँ लिखी गोस्वामी तुलसीदास के लिखे दोहावली, कवित्तरामायण, गीतावली, रामचरित मानस, रामलला नहछू, पार्वतीमंगल, जानकी मंगल, बरवै रामायण, रामाज्ञा, विन पत्रिका, वैराग्य संदीपनी, कृष्ण गीतावली। इसके अतिरिक्त रामसतसई, संकट मोचन, हनुमान बाहुक, रामनाम मणि, कोष मञ्जूषा, रामशलाका, हनुमान चालीसा आदि आपके ग्रंथ भी प्रसिद्ध हैं। गोस्वामी तुलसीदास की रचनाओं की मुगल शासक अकबर और जहाँगीर ने प्रशंसा की थी।
दोहावली: दोहावली ब्रज और अवधी भाषा में लिखित हैं। दोहावली में कुल ब्रज और अवधि भाषा में 573 विविध प्रकार के दोहों और सोरठा का संग्रह है । प्रत्येक दोहा स्वतंत्र हैं और अलग अलग विषय को समाहित करता हैं। इनमें से 85 दोहों का उल्लेख रामचरितमानस में भी है। दोहावली से हमें ज्ञात होता है की किस प्रकार से तुलसीदास जी ने बड़ी ही बारीकी से दुनिया को देखा था जिनका अवलोकन हमें दोहों के रूप में दिखाई देता है। कवितावली: इसमें ब्रज भाषा में कविताओं का समूह है। महाकाव्य रामचरितमानस की तरह इसमें 7 किताबें और कई उपकथा है। कवितावली में १६ वी शताब्दी का परिदृष्य भी अवलोकित होता हैं। कवितावली भगवान श्रीरामचंद्र जी के जीवन एवं उनकी स्तुति को समर्पित, ३२५ छंदों को ७ सात भागों में विभक्त है।कवित्त, सवैय्ये, घनाक्षरी एवं छप्पे जैसी विधाओं में लिखे हुए ये छंद रामचरितमानस में उपलब्ध कुछ कहानियों को तो बताते ही हैं, साथ ही साथ कुछ अन्य घटनाओं का भी जिक्र करते हैं। गीतावली: गीतावली तुलसीदास की एक प्रमुख रचना है। इसमें गीतों में भगवान श्रीराम की कथा के साथ ही राम-कथा सम्बन्धी जो गीत गोस्वामी तुलसीदास ने समय-समय पर रचे, वे इस ग्रन्थ में संग्रहित हुए हैं। सम्पूर्ण रचना सात खण्डों में विभक्त है। राम चरित मानस के अनुरूप ही इसमें भी कथा का विभाजन हुआ है। यह ब्रजभाषा में रचित गीतों वाली रचना है जिसमें राम के चरित की अपेक्षा कुछ घटनाएँ, झाँकियाँ, मार्मिक भावबिन्दु, ललित रस स्थल, करुणदशा आदि को प्रगीतात्मक भाव के एकसूत्र में पिरोया गया है। इसमें कथा की कोई प्रस्तावना या भूमिका है और न ही 'मानस' की भाँति इसमें उत्तरकाण्ड में अध्यात्मविवेचन। बीच-बीच में भी 'मानस' की भाँति आध्यात्मिक विषयों का उपदेश करने का कोई प्रयास नहीं किया गया है। सम्पूर्ण पदावली राम-कथा तथा रामचरित से सम्बन्धित है। मुद्रित संग्रह में 328 पद हैं। इसमें ब्रज भाषा के 328 गीतों का संग्रह है जो सात किताबों में विभाजित है और सभी हिन्दूस्तानी शास्त्रीय संगीत के प्रकार है। ‘गीतावली’ मूलतः कृष्ण काव्य परम्परा की गीत पद्धति पर लिखी गयी रामायण ही है।
कैकेयी जौ लौं जियत रही।
तौ लौं बात मातु सों मुह भरि भरत न भूलि कही।।
मानी राम अधिक जननी ते जननिहु गँसन गही।
सीय लखन रिपुदवन राम-रुख लखि सबकी निबही।।
लोक-बेद-मरजाद दोष गुन गति चित चखन चही।
तुलसी भरत समुझि सुनि राखी राम सनेह सही।।
कृष्णा गीतावली या कृष्णावली: इसमें भगवान कृष्ण के लिये 61 गीतों का संग्रह जिसमें से 32 कृष्ण की रासलीला और बचपन पर आधारित है। इसमें कुल 61 पद हैं, जिनमें 20 बाललीला, 3 रूप-सौन्दर्य के, 9 विरह के, 27 उद्धव-गोपिका-संवाद या भ्रमरगीत के और 2 द्रौपदी-लज्जा-रक्षण के हैं। सभी पद परम सरस और मनोहर हैं। पदों में ऐसा स्वाभाविक सुन्दर और सजीव भावचित्रण है कि पढ़ते-पढ़ते लीला-प्रसंग मूर्तिमान होकर सामने आ जाता है। विद्वानों का अनुमान है कि इसकी रचना तुलसीदास ने अपनी वृन्दावन यात्रा के क्रम में यात्रा की समाप्ति के ठीक बाद किसी समय की है ।
कबहुं न जात पराए धाम ही।
खेलत ही निज देखों आंगन सदा सहित बलराम ही।
विनय पत्रिका: विनय पत्रिका तुलसीदास के 279 स्तोत्र गीतों का संग्रह है। प्रारम्भ के 63 स्तोत्र और गीतों में गणेश, शिव, पार्वती, गंगा, यमुना, काशी, चित्रकूट, हनुमान, सीता और विष्णु के एक विग्रह विन्दु माधव के गुणगान के साथ राम की स्तुतियाँ हैं। इसमें 279 ब्रज के श्लोकों का संग्रह है जिसमें से 43 देवी-देवताओं के लिये है। अन्य देवताओं के साथ उनकी भक्ति तो दिखाई देती हैं लेकिन साथ ही श्री राम के प्रति उनकी श्रद्धा दिखाई देती हैं। 'विनयपत्रिका' के ही एक प्रसिद्ध पद में उन्होंने कहा है -
"तुलसी सो सब भाँति परम हित पूज्य प्रान ते प्यारो।
जासों होय सनेह राम पद एतो मतो हमारो॥"
पार्वती मंगल: इसमें अवधि भाषा में 164 पद है जो भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह का वर्णन करते है। इसका विषय शिव-पार्वती विवाह है। पार्वती मंगल में भगवान शंकर एवं पार्वती के पाणिग्रहण का काव्यमय चित्रण किया गया है। जगदम्बा पार्वती ने भगवान शंकर जैसे निरन्तर समाधि में लीन रहनेवाले परम उदासीन वीतराग को पति रूप में प्राप्त करने के लिये कैसी कठोर साधना की, कैसे-कैसे क्लेश सहे, किस प्रकार उनके आराध्य देव ने उनके प्रेम की परीक्षा ली और अंत में कैसे उनकी अदम्य निष्ठा की जीत हुई इसका हृदयग्राही तथ मनोरम वर्णन पार्वती मंगल में है। शिव बरात के वर्णन में तुलसीदास जी ने हास्यरस के मधुर पुट के साथ विवाह एवं विदाई का मार्मिक एवं रोचक वर्णन करके इस छोटे से काव्य का उपसंहार किया है। इसमें सोहर की 148 द्विपदियाँ तथा 16 हरिगीतिकाएँ हैं। जानकी मंगल: इसमें अवधि भाषा में 216 पद है जो भगवान राम और माता सीता के विवाह का वर्णन करते है। गोस्वामी तुलसीदास कृत जानकी मंगल में राम व सीता के विवाह का वर्णन है। जनकपुर में स्वयंवर की तैयारी, विश्वामित्र द्वारा अयोध्या जाकर राम-लक्ष्मण को यज्ञ की रक्षा के बहाने अपने साथ ले जाना, धनुष-यज्ञ दिखाने के बहाने उन्हें जनकपुर ले जाना, रंग-भूमि में पधारकर श्रीराम के धनुष तोड़ने तथा सीता जी द्वारा उन्हें वरमाला पहनाने, महाराज दशरथ द्वारा बारात लेकर जनकपुर जाने, विवाह-संस्कार बिदाई और अयोध्या में आनंद मनाए जाने आदि का वृत्तांत इसमें कहा गया है।
पंथ मिले भृगुनाथ हाथ फरसा लिए।
डाँटहि आँखि देखाइ कोप दारुन किए।।
राम कीन्ह परितोष रोस रिस परिहरि।
चले सौंपि सारंग सुफल लोचन करि।।
रघुबर भुजबल देख उछाह बरातिन्ह।
मुदित राउ लखि सन्मुख विधि सब भाँतिन्ह।।
रामालला नहछू: अवधि में बालक राम के नहछू संस्कार (विवाह से पहले पैरों का नाखून काटना) को बताता है। गोस्वामी तुलसीदास की प्रथम रचना ‘रामलला नहछू’ मानी जाती है. इस लघु कृति के बीस सोहर छंदों में नहछू लोकाचार का वर्णन हुआ है.’सोहर’ अवध क्षेत्र का प्रख्यात छंद है,जो मुख्तया बच्चे के जन्म पर गाया जाता है,हालांकि यह अन्य क्षेर्त्रों में भी समान रूप से प्रचलित है.इसके अतिरिक्त यह कर्णवेध,मुंडन और उपनयन संस्कारों तथा नहछू लोकाचारों पर स्त्रियाँ इसे गाती हैं. रामाज्ञा प्रश्न: 7 कंदों और 343 दोहों में श्रीराम की इच्छा शक्ति का वर्णन किया गया है। तुलसीदास की यह रचना दोहों में हैं। यह विचार उन्होंने राम-कथा की सहायता से प्रस्तुत किया है। यह रचना दोहा शैली में रचित है। सात-सात सप्तकों के सात सर्गों के लिए पुस्तक खोलने पर जो दोहा मिलता है उसके पहले राम-कथा का कोई एक प्रसंग आता है और बाद में शुभ-अशुभ फल चर्चा आती है। वैराग्य संदीपनी: वैराग्य संदीपनी की रचना चौपाई और दोहों में हुई है। वैराग्य और बोध की स्थिति की व्याख्या करने के लिये ब्रज भाषा में इसमें 60 दोहे है। तुलसीदास जी की इस रचना में दोहे और सोरठे 48 तथा चौपाई की चतुष्पदियाँ 14 हैं।
राम बाम दिसि जानकी लखन दाहिनी ओर ।
ध्यान सकल कल्यानमय सुरतरु तुलसि तोर ॥
हनुमान चालीसा: इसमें 40 पद है जो अवधि भाषा में हनुमान जी को समर्पित है साथ ही इसमें 40 चौपाईयाँ और 2 दोहे भी है। हनुमान चालीसा भगवन हनुमान जी को समर्पित है और गोस्वामी तुलसीदास द्वारा 16वी शताब्दी में रची गयी थी।
॥दोहा॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥
॥चौपाई॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥
राम दूत अतुलित बल धामा ।
अञ्जनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥
महाबीर बिक्रम बजरङ्गी ।
कुमति निवार सुमति के सङ्गी ॥३॥
कञ्चन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुञ्चित केसा ॥४॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५॥
शंकर सुवन केसरीनन्दन ।
तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥६॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥७॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लङ्क जरावा ॥९॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥
लाय सञ्जीवन लखन जियाये ।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥
रघुपति कीह्नी बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥
सहस बदन तुह्मारो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥१३॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।
राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६॥
तुह्मरो मन्त्र बिभीषन माना ।
लङ्केस्वर भए सब जग जाना ॥१७॥
जुग सहस्र जोजन पर भानु ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुह्मरे तेते ॥२०॥
राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥
सब सुख लहै तुह्मारी सरना ।
तुम रच्छक काहू को डर ना ॥२२॥
आपन तेज सह्मारो आपै ।
तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥२३॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥२४॥
नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥२५॥
सङ्कट तें हनुमान छुड़ावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६॥
सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिन के काज सकल तुम साजा ॥२७॥
और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८॥
चारों जुग परताप तुह्मारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥
साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकन्दन राम दुलारे ॥३०॥
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥३१॥
राम रसायन तुह्मरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥
तुह्मरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥
अन्त काल रघुबर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥
और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥३५॥
सङ्कट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥
जय जय जय हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७॥
जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥३८॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥४०॥
॥दोहा॥
पवनतनय सङ्कट हरन मङ्गल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥
श्री विकास नाथ जी के मधुर स्वर में गाय गया यह हनुनमान चालीसा अवश्य सुने -
संकटमोचन हनुमानाष्टक: इसमें अवधि में हनुमान जी के लिये 8 पद है। संकटमोचन हनुमानाष्टक का पाठ करने से हर बाधा और पीड़ा से मुक्ति मिलती है और हर संकट का नाश होता है|
बाल समय रबि भक्षि लियो तब तीनहुँ लोक भयो अँधियारो।
ताहि सों त्रास भयो जग को यह संकट काहु सों जात न टारो।
देवन आनि करी बिनती तब छाँड़ि दियो रबि कष्ट निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥१॥
बालि की त्रास कपीस बसै गिरि जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महा मुनि साप दियो तब चाहिय कौन बिचार बिचारो।
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु सो तुम दास के सोक निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥२॥
अंगद के सँग लेन गये सिय खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु बिना सुधि लाए इहाँ पगु धारो।
हेरि थके तट सिंधु सबै तब लाय सिया-सुधि प्रान उबारो।
को नहिं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥३॥
रावन त्रास दई सिय को सब राक्षसि सों कहि सोक निवारो।
हनुमानबाहुक: यह गोस्वामी जी की हनुमत-भक्ति संबंधी रचना है। इसमें 44 पद है जो हनुमान जी के भुजाओं का वर्णन कर रहा है। ऐसा कहा जाता है की एक बार तुलसीदास जी गंभीर रूप से बीमार हो गए थे. समस्त प्रकार की औषधियां तंत्र मंत्र के बावजूद भी जब उनके स्वस्थ्य में किसी प्रकार का कोई सुधार नहीं हुआ तो उन्होंने श्री हनुमान जी की पूजा अर्चना और सुमिरन प्रारम्भ किया। उनकी साड़ी व्यथा अंजनी कुमार की कृपा से स्वतः ही नष्ट हो गयी, इसीलिए हनुमान बाहुक को सभी विपदाओं और पीड़ाओं को हरने वाला माना जाता है। शारीरिक रोगों के अतिरिक्त और भी सब प्रकार की लौकिक बाधाएँ इस स्तोत्र से निवृत होती हैं। इससे मानसरोग मोह, काम, क्रोध, लोभ एवं राग-द्वेष आदि तथा कलियुग कृत बाधाएँ भी नष्ट हो जाती हैं।
छप्पय
सिंधु तरन, सिय-सोच हरन, रबि बाल बरन तनु ।
भुज बिसाल, मूरति कराल कालहु को काल जनु ॥
गहन-दहन-निरदहन लंक निःसंक, बंक-भुव ।
जातुधान-बलवान मान-मद-दवन पवनसुव ॥
कह तुलसिदास सेवत सुलभ सेवक हित सन्तत निकट ।
गुन गनत, नमत, सुमिरत जपत समन सकल-संकट-विकट ॥१॥
स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रवि तरुन तेज घन ।
उर विसाल भुज दण्ड चण्ड नख-वज्रतन ॥
पिंग नयन, भृकुटी कराल रसना दसनानन ।
कपिस केस करकस लंगूर, खल-दल-बल-भानन ॥
कह तुलसिदास बस जासु उर मारुतसुत मूरति विकट ।
संताप पाप तेहि पुरुष पहि सपनेहुँ नहिं आवत निकट ॥२॥
झूलना
पञ्चमुख-छःमुख भृगु मुख्य भट असुर सुर, सर्व सरि समर समरत्थ सूरो ।
माया जीव काल के करम के सुभाय के, करैया राम बेद कहें साँची मन गुनिये ।
तुम्ह तें कहा न होय हा हा सो बुझैये मोहिं, हौं हूँ रहों मौनही वयो सो जानि लुनिये ॥४४॥
तुलसी सतसाईं: इसमें ब्रज और अवधि में 747 दोहों का संग्रह है जो 7 सर्गों में विभाजित है। इन दोहों में से अनेक दोहे 'दोहावली' की विभिन्न प्रतियों में तुलसीदास के अन्य ग्रंथों में भी मिलते हैं और उनसे लिये गये है। बहुत से 'रामचरित मानस' और 'रामज्ञा प्रश्न' से लिये गये हैं।
तुलसीदास ने अपने जीवन का ज्यादातर समय वाराणसी में ही बिताया। उन्होंने वाराणसी में संकटमोचन मंदिर की स्थापना की थी, जो हनुमान का ही मंदिर है, लोगो का मानना है की तुलसीदास ने उसी जगह पर भगवान हनुमान के वास्तविक दर्शन किये थे। वाराणसी का तुलसी घाट का नाम उन्हीं के नाम पर पड़ा है। तुलसीदास ने ही रामलीला के नाटको की शुरुवात की थी।१२६ वर्ष की अवस्था में संवत् १६८० श्रावण शुक्ल सप्तमी, शनिवार को आपने अस्सी घाट पर अपना शहरी त्याग दिया।
संवत सोलह सै असी, असी गंग के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तज्यो शरीर।।
Goswami Tulsidas Biography in Hindi गोस्वामी तुलसीदास का परिचय
Reviewed by Saroj
on
August 22, 2018
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