अजब हैरान हूं भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं…
कोई वस्तु नहीं ऐसी, जिसे सेवा में लाऊं मैं…
करूं किस तौर आवाहन, कि तुम मौजूद हो हर जां,
निरादर है बुलाने को, अगर घंटी बजाऊं मैं…
अजब हैरान हूं भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं…
तुम्हीं हो मूर्ति में भी, तुम्हीं व्यापक हो फूलों में,
भला भगवान पर भगवान को कैसे चढाऊं मैं…
अजब हैरान हूं भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं…
लगाना भोग कुछ तुमको, एक अपमान करना है,
खिलाता है जो सब जग को, उसे कैसे खिलाऊं मैं…
अजब हैरान हूं भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं…
तुम्हारी ज्योति से रोशन हैं, सूरज, चांद और तारे,
महा अंधेर है कैसे, तुम्हें दीपक दिखाऊं मैं…
अजब हैरान हूं भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं…
भुजाएं हैं, न सीना है, न गर्दन, है न पेशानी,
कि हैं निर्लेप नारायण, कहां चंदन चढ़ाउं मैं…
अजब हैरान हूं भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं…
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Saroj Jangir Founder, Lyrics Pandit |
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